सद्बुद्धि पा बदल सको तुम, पर हम यही प्रार्थना करते। सद्बुद्धि पा बदल सको तुम, पर हम यही प्रार्थना करते।
रुक रुक कर ये प्यासी आँखें, देख रही हैं किसकी राहें। बींधे मन के दुख से निकली, रुक रुक कर ये प्यासी आँखें, देख रही हैं किसकी राहें। बींधे मन के दुख से निकली,
(मत्तगयंद सवैया) भगण (211) की आवृत्ति के बाद 2 गुरु (मत्तगयंद सवैया) भगण (211) की आवृत्ति के बाद 2 गुरु
अवलम्ब अगोचर शम्भु सदा, निज भक्तन को नित मान दियो।। अवलम्ब अगोचर शम्भु सदा, निज भक्तन को नित मान दियो।।
लोक बिसार बिसार सभी कुछ फाग व राग सुनाय रही हैं । लोक बिसार बिसार सभी कुछ फाग व राग सुनाय रही हैं ।
नीति -अनीति व धर्म -अधर्म विसार सभी मति मारन लागे । नीति -अनीति व धर्म -अधर्म विसार सभी मति मारन लागे ।